Sunday 3 July 2011

एक कर्मठ व्यक्तित्व का अवसान-कामरेड चतुरानन मिश्र

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हिंदुस्तान-लखनऊ -३/७/२०११ 


का.चतुरानन मिश्र जी से मेरी व्यक्तिगत मुलाक़ात मार्च १९९२ में तब हुयी थी जब वह उत्तर प्रदेश भाकपा के राज्य सम्मलेन में केन्द्रीय नेतृत्व की हैसियत से आये थे.मैं उस समय आगरा भाकपा में कोषाध्यक्ष था और मुझे सम्मलेन में भाग लेने वाले नेताओं के वापिसी टिकटों का बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी मिली थी.का. चतुरानन जी को ताज एक्सप्रेस से दिल्ली लौटना था और उन्होंने अपना संसदीय आई  .सी.न. देकर सीट रिजर्व करने को कहा था.मैनें राजा मंडी स्टेशन से कन्फर्म  सीट न. लाकर उन्हें बता दिया था.न तो कोई फ़ार्म भर कर दिया था न ही टिकट मिला था.का.चतुरानन मिश्र जी का व्यवहार मुझ जैसे छोटे कार्यकर्ता के साथ भी काफी मधुर था.

मेरी पत्नी बताती हैं उनके फूफाजी स्व.शशिभूषण प्रसाद जी और चतुरानन मिश्र जी साथ-साथ इकोनामिक्स पढ़ाते थे ,मधुबनी के डिग्री कालेज में.मिश्र जी उनके अच्छे मित्रों में थे और घंटों-घंटों उनके घर पर वार्ता होती रहती थी.

जब किसी से व्यक्तिगत मुलाक़ात रही हो तो उसके न रहने से विशेष दुःख होता है.का. चतुरानन मिश्र जी ने का. इन्द्रजीत गुप्त जी के साथ देवगौड़ा जी की सर्कार में 'लोकपाल 'विधेयक पेश कराने में भूमिका निबाही थी.तब भाजपा ने कांग्रेस से मिल कर उस सर्कार को गिरवा दिया था और वह 'लोकपाल बिल'अधर में लटक गया.आज भाजपा अन्ना को आगे करके लोकपाल-लोकपाल का राग अलाप रही है जो उसका दिखावा है.

का. चतुरानन मिश्र जी की जो लगन किसानों और मजदूरों के प्रति थी उसका अन्सरन करना ही उन्हें सच्ची श्रधान्जली होगी.

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