Sunday 10 May 2015

उन फुटपाथियों का क्या, जिनका खून बहा? --- शशि शेखर

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‘रोटी नहीं है तो क्या हुआ, केक खा लें।’ फ्रांस की महारानी मेरी अंत्वानेत ने 1789  की एक दोपहर अपनी प्रजा के लिए जैसे ही यह कहा,  वैसे ही विश्व इतिहास की एक बड़ी घटना ने आकार ग्रहण करना शुरू कर दिया। राजा को ईश्वर का अवतार मानने वाले निरीह फ्रेंच नागरिक बस्ताइल के राजभवन में इस उम्मीद के साथ पहुंचे थे कि प्रभु का अवतार राजा उनकी भूख मिटाने का इंतजाम करेगा। हुआ उल्टा। महारानी की सलाह ने उनके उदर में जल रही भूख की ज्वालाओं को क्रांति की लपटों में तब्दील कर दिया। फ्रांस की राज्य क्रांति ने सदियों पुराने उस सिद्धांत को जमींदोज कर दिया,  जो लोगों के दिमाग पर यह कहकर ताला लगा देता था कि राजा ईश्वर का अवतार होता है। उसके बारे में बुरा सोचना,  कहना और सुनना पाप है। चर्च और श्री-सत्ता संपन्न लोग इस सिद्धांत को पोसते आए थे। मेरी के इस तथाकथित जुमले ने न केवल लुई खानदान को मौत के गर्त में पहुंचा दिया,  बल्कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदा-सर्वदा के लिए स्थापित की। इस क्रांति का शाश्वत सबक है- ‘गरीब की हाय और हया से मत खेलो, भस्म हो जाओगे।’  पिछले चार दिन से सलमान खान की सजा को लेकर जिस तरह का तमाशा रचा जा रहा है, उसने न केवल यह कहानी याद दिला दी, बल्कि दशकों से मेरे मन में पुराने नासूर की तरह काबिज गुत्थी को भी सुलझा दिया।

इतिहासकारों का एक तबका कहता आया है कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि महारानी मेरी ने कभी ‘रोटी-केक’ का जुमला बोला था या नहीं। सलमान को सजा के तत्काल बाद अपनी सिताराई आभा खो चुके पाश्र्व गायक अभिजीत के निंदनीय ट्वीट पर गौर फरमाएं- ‘कुत्ता रोड पर सोएगा, तो कुत्ते की मौत ही मरेगा। सड़क गरीब के बाप की नहीं है..।’ इसे पढ़ने के बाद मुझे यह यकीन हो चला है कि महारानी नहीं, तो किसी दरबारी ने जरूर ‘रोटी नहीं तो केक..’ जैसी उक्ति के जरिये निर्धनों की भूख का मजाक उड़ाया होगा। इन दिनों सलमान खान को बेहद परोपकारी इंसान के तौर पर दर्शाने की कोशिश की जा रही है। क्या वह हमेशा से ऐसे हैं? जरा पीछे लौटते हैं। 2006 में जोधपुर की जेल से निकलने के बाद सलमान का करियर डगमगा गया था,  फिल्में पिट रही थीं और निजी जिंदगी में उनका उदंडता भरा रवैया उन्हें ‘खलनायक’ साबित कर रहा था। सिनेमाई नायकों से लोग असल जीवन में भी नायकत्व की उम्मीद करते हैं। यही वजह है कि कभी बेहद अकड़ रहे अमिताभ बच्चन ने बरसों पहले शालीनता का लबादा ओढ़ लिया था।

इसीलिए आमिर खान समाज सुधारक के तौर पर पेश आते हैं और शाहरुख हर समय खिलंदड़े नौजवान की भूमिका निभाते दिखते हैं। सलमान ने भी ‘बीइंग ह्यूमन’ की स्थापना कर अपनी छवि चमकाने की कोशिश की। इस अभियान में समूचा खान खानदान उनके साथ था। फिल्म नगरी के कुछ स्थापित घरानों से खुन्नस खाने वाले लोगों को उनके साथ में खुद का लाभ दिखाई दिया। नतीजतन, रह-रहकर ऐसी खबरें आने लगीं, जिनमें कोई सलमान को परम दयालु साबित करने में जुटा था, तो किसी कैंसर पीड़ित को उनमें रब बसता दिखाई पड़ रहा था। मैं यह कतई नहीं कह रहा कि वह लोगों की मदद नहीं कर रहे, या उन्हें भला बनने और दिखने का हक नहीं, पर सच है कि उनकी शख्सियत का यह पहलू जेल यात्राओं से पहले तक लोगों की नजरों से ओझल था। वह उन दिनों बिगड़ैल शख्स के तौर पर जाने जाते थे।

आप याद करें। दिसंबर 2001 में ऐश्वर्या राय के पिता ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि वह पूर्व विश्व सुंदरी को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं। बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स ने उन दोनों के टेलीफोन टेप के हवाले से एक खबर प्रकाशित की थी। उस वार्तालाप के दौरान वह ऐश्वर्या को धमका रहे थे। उनके मुंह से निकलने वाले कुछ शब्द ऐसे थे, जिनका यहां इस्तेमाल नामुमकिन है। यही नहीं, अपनी गर्लफ्रेंड सोमी अली को उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐसा अपमानित किया कि उसका दिल ही टूट गया। उसने ‘माया लोक’ और मुंबई, दोनों से विदा ले ली। संगीता बिजलानी के साथ भी उन्होंने ऐसा ही सुलूक किया था। कैटरीना कैफ तक उनके रौद्र रूप का शिकार बनीं।

इंग्लैंड से आई इस सलोनी बाला ने मीडिया के सामने अपने दुख का इजहार नहीं किया, पर यह सच है कि उनकी मानसिक यातना का सिलसिला लंबा खिंचा। कहते हैं कि एक था टाइगर के सेट पर भी सलमान ने उनके साथ बदसलूकी कर दी थी। फिल्मी दुनिया में मोहब्बतों और वफादारियों का सिलसिला अक्सर लंबा नहीं चलता, पर सलमान अकेले ऐसे हैं, जिनके जीवन में आई महिलाएं खुद को तरह-तरह की यंत्रणाओं के बाद ही मुक्त कर पाईं।
ऐसा नहीं है कि वह अपनी जिंदगी में आने वाली युवतियों से ही दुर्व्यवहार करते हैं। आमिर खान ने उनके साथ अंदाज अपना-अपना फिल्म की थी। उसके बाद उन्होंने लिखा कि मेरे लिए सलमान के साथ काम करना संताप भरा अनुभव रहा। कैटरीना की जन्मदिन पार्टी पर सलमान अपने पुराने दोस्त शाहरुख से लड़ बैठे। और तो और, बहुत थोड़े से लमहे के लिए ऐश्वर्या के मित्र बने विवेक ओबेरॉय से भी उन्होंने पंगा ले लिया था।

जवाब में विवेक ने समाचार चैनलों के जरिए उन्हें खुले मुकाबले की चुनौती दे डाली। खान परिवार ने उन्हें इसके लिए आज तक क्षमा नहीं किया है। ऐश्वर्या राय ने जब अभिषेक बच्चन से शादी कर ली, तब भी सार्वजनिक मंचों से सलमान ने उनका मजाक उड़ाया। वह ऐश्वर्या राय के बाद ‘बच्चन’ शब्द पर बेहद जोर देते हुए ऐसी भंगिमा बनाते कि लोग हंसने लग जाते। महिलाओं का मजाक उड़ाना हमारे समाज में अच्छा नहीं समझा जाता, पर सलमान ने अच्छे-बुरे का फर्क कहां सीखा है?  इसीलिए प्रेस को ऊटपटांग जवाब देने और बिग बॉस के दौरान प्रतिभागियों के साथ क्रूर मजाक करने में उन्होंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।

अब मौजूदा मुकदमे पर आते हैं। 2002 में जब वह पहली बार इस केस के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए थे, तो कुछ ही घंटों में उनकी जमानत हो गई थी। इस बार भी मुंबई हाईकोर्ट ने 13 साल बाद मिली सजा के कुछ ही घंटे के अंदर उन्हें दो दिन की अंतरिम जमानत दे दी। बाद में, उच्च न्यायालय ने गए शुक्रवार को निचली अदालत से मिली सजा को भी निलंबित कर दिया। मतलब साफ है। वह तब तक जेल नहीं जाएंगे, जब तक माननीय उच्च न्यायालय उन्हें दोषी नहीं पाता। निचली अदालत को निर्णय तक पहुंचने में 13 साल लग गए। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट में यह न्याय यात्रा कितने समय में मुकाम तक पहुंचेगी? चलने से पहले फ्रांसीसी राजनीति की ओर लौटता हूं। उसके बाद से राज परिवारों का वक्त लद जरूर गया, पर गरीब और गरीबी कायम है। सलमान के मामले को ही लें। हर ओर चर्चा में वह या उनके साथी सितारे हैं। उन फुटपाथियों का क्या, जिनका खून बहा? पहले उन्हें फिल्म स्टार की गाड़ी ने कुचला, अब किस्मत रौंद रही है। इन अभिशप्तों पर भी तो कोई नजर डाले!

@shekharkahin
shashi.shekhar@livehindustan.com 

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http://vijaimathur.blogspot.in/2015/05/blog-post_9.html 

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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2 comments:

  1. आपके इस ज्वलंत लेख का उल्लेख सोमवार की आज की चर्चा, "क्यों गूगल+ पृष्ठ पर दिखे एक ही रचना कई बार (अ-३ / १९७२, चर्चामंच)" पर भी किया गया है. सूचनार्थ.
    ~ अनूषा
    http://charchamanch.blogspot.in/2015/05/blog-post.html

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  2. ज्वलंत आलेख आदरणीय।

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