Friday 2 June 2017

अफगानिस्तान तो बच गया क्योँ की वहां EVM से चुनाव नही हुआ था,बाकी भारत का देखते है ------ डॉक्टर_रिजी_रिज़वान/ अश्वनी श्रीवास्तव


Ashwani Srivastava
1996 में जब तालिबान की सरकार अफगानिस्तान में बनी तब इस्लाम के मानने वालों को लगा कि अब तो मानो अबु बकर सिद्दीक की खिलाफत आ चुकी है, हर तरफ इंसाफ ही इंसाफ होगा... धर्म के नाम पे चलने वाला मूवमेंट सत्ता में आ गया था। किसी का हक नही मारा जाएगा, किसी के साथ अन्याय नही होगा। इसी विश्वाश के साथ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने तालिबानी आंदोलन को समर्थन दे दिया, पाकिस्तान तो पहले से समर्थन में था।
किन्तु हुआ इसका उल्टा.. तालिबान को हर तरफ शिर्क बिदअत कुफ्र बेपर्दगी अश्लीलता अधर्म नजर आने लगा। चरमपंथ उस स्तर पे जा पंहुचा था कि किसी औरत को बिना बुर्खे के देख लेते तो भीड़ उसपे दुराचार का आरोप लगाकर सरेआम कत्ल कर देती। शक के आधार पे किसी का भी कत्ल कर देना आम बात थी।
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर में कोई योग्यता नही थी, ना ही उसके चेलों में देश चलाने लायक कुछ था। अफगानिस्तान की जनता ने सिर्फ धर्म की ठेकेदारी का लेबल देखकर इन्हें शीर्ष पे बैठाया.. इन्होंने उसी जनता को डसना शुरू कर दिया।
तालिबान का उदय कोई अचानक से नही हुआ, बल्कि ये अफगानिस्तान के गर्भाशय में कई वर्षो से पल रहा था। इसकी सरंचना कट्टरपंथी इस्लाम की बुनियाद पे थी। तालिबान ने पूरी दुनिया में इस्लाम की छवि को बुरी तरह धूमिल किया।
अंतः कुछ ही वर्षो बाद 2001 में इसका सर कुचलने शुरुआत हुई। सर कुचलने में नाटो सेना का सहयोग इस्लामिक मुल्कों ने किया मगर नाटो भी खून के प्यासे निकले, उनके दिलों दिमाग में मौत का इतना खौफ था कि उन्होंने अफगानिस्तान के आम नागरिकों को मारना शुरू कर दिया। ये तालिबानियों से बड़े विध्वंशकारी बनकर उभरे।
अब आप तालिबान की कहानी को भारत में ढूंढिये...
* तालिबानी शाशन में भीड़ इंसाफ करती थी,सजा देती थी.. भारत में भी आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है
* तालीबानी व्यवस्था में हर व्यक्ति जो तालिबान का समर्थक था उसे ये अधिकार था कि वो लोगो को अपने हिसाब से हांक सके.. यहां भी एंटी रोमियो, गौ रक्षक जैसे दर्जन भर संघटन "पुलिस और आर्मी" का काम करते है। जो काम प्रसाशन का होता है वो ड्यूटी ये करते है।
*तालिबान में उन्मादी भीड़ को प्रसाशन का समर्थन हुआ करता था। यहां भी उपद्रवी भीड़ के साथ पुलिस मूकदर्शक बनी देखी गयी है। पुलिस की मौजूदगी में कत्ल होते है यहां.. पत्थरबाजी, दंगे फसाद आगज़नी होती है।
*मुल्ला उमर के संघटन तालिबान का समर्थन बहुसंख्यक धर्मांध लोगो ने सिर्फ इसलिए किया क्योकि उन्हें लगा की अब शुद्ध 24 कैरेट खलीफा राज आएगा दुनिया में.. यहां भी बहुसंख्यको को हिन्दुराष्ट्र का सब्जबाज़ दिखाया गया है और वे मन मग्न होकर देख भी रहे है।
* तालिबान अपनी धार्मिक मान्यताएं लोगो पे थोपता था, ऐसा ही कुछ यहां भी हो रहा है। आपकी हांड़ी में क्या पका है इसका जायज़ा सरकार और उसकी छाँव में पल रहे संघटन लेते फिर रहे है। वहां बुर्खे टोपी पाजामे में धार्मिक भावनाएं हुआ करती थी और यहां लोगो की हांडियों में धार्मिक भावनाएं होती है।
* तालिबानी मोमिन का प्रमाणपत्र जेब में रखते थे, इस्लाम प्रमाणित ना होने पे कत्ल कर देते थे.. यहां देशभक्ति के प्रमाणपत्र जेब में रखे जाते है और प्रमाणित ना होने पे कत्ल कर दिया जाता है। ये देशभक्त कभी भी घूसखोरों के घर जाकर नही जलाते, इनका निशाना हमेशा पिछड़े कुचले लोग होते है जिन्हें पता भी नही की भारत की सीमा शुरू कहाँ से होती है और खत्म कहाँ..
* तालिबान ने शीर्ष पदों पे उन्हें बैठाया जो अपने धर्म के सबसे बड़े कट्टर थे।
*तालिबान का अंतिम लक्ष्य पुरे में विश्व में अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर सभी पे थोपना था। उनके कट्टरपंथी इस्लाम ने उन्हें महज 5 साल बाद धूल फांकने पे मजबूर कर दिया।
*अफगानिस्तान तो बच गया 5 साल बाद,क्योँ की वहां EVM से चुनाव नही हुआ था,बाकी भारत का देखते है।
#डॉक्टर_रिजी_रिज़वान
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