Thursday 1 February 2018

कयास कासगंज की चिंगारी से ------ विजय राजबली माथुर

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49 वर्ष पूर्व जब मेरठ कालेज, मेरठ में बी ए का छात्र था तब अर्थशास्त्र के हमारे एक प्रोफेसर आनंद स्वरूप गर्ग साहब  ( जिनकी लिखी पुस्तकें कोर्स में भी पढ़ाई जाती थीं और जो खुद स्टील चादर से कीलें बनाने के व्यवसाय से भी जुड़े हुये थे )इकानमिक्स की पढ़ाई को स्थानीय उदाहरणों से समझाया करते थे। उनका साफ - साफ कहना था कि , जितने भी सांप्रदायिक दंगे होते हैं उनमें धार्मिक कट्टरता को ढूंढा जाता है जबकि वे कराये जाते हैं विशुद्ध आर्थिक आधार पर । उनके अनुसार भारत  - पाक का विभाजन भी धार्मिक आधार पर नहीं हुआ था बल्कि ब्रिटेन और यू एस ए के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए हुआ था जिसके शिकार भारत और पाकिस्तान के नागरिक बनाए गए थे। 

वह मेरठ में हुये पुराने दंगों का उल्लेख कर बताते थे कि, किस प्रकार हिन्दू व्यापारियों ने मुस्लिम व्यापारियों को उजाड़ कर उनके व्यवसाय पर कब्जा जमा लिया था। प्रोफेसर गर्ग बताया करते थे कि , पाकिस्तान का इस्तेमाल यूरोप और यू एस ए के व्यापार का संरक्षण करने के लिए हो रहा है और अशिक्षा, अज्ञानता के कारण वहाँ की जनता शासकों के मंसूबों को नहीं भाँप पाती है और सत्ता द्वारा कुचली जाती है। भारत में बहुसंख्यक व्यापारी वर्ग अल्पसंख्यक वर्ग के व्यापारियों का व्यवसाय छीनने के लिए ही सांप्रदायिकता का सहारा लेता है । 

आज जब कासगंज हिंसा पर द वायर द्वारा जारी ग्राउंड रिपोर्ट का यह वीडियो सुना और इन युवा पत्रकारों की वाणी द्वारा उन बातों का उल्लेख पाया जिनको प्रोफेसर आनंद स्वरूप गर्ग साहब के मुख से अपनी पढ़ाई के दौरान सुना करता था तब  यह उनके आंकलन का पुष्टिकरण ही लगा। 

 


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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